मिजाज कातिल हो चुका हो तो चाकू पर रोक फिजूल...

15 सितंबर 2025 

 

अलग-अलग मंत्रालयों के लिए संसद की कमेटियां रहती हैं, जिनमें अलग-अलग पार्टियों के सांसदों को रखा जाता है, और वे किसी प्रस्ताव, योजना, या प्रस्तावित कानून पर विचार-विमर्श करते हैं। मंत्रालय सार्वजनिक इश्तहारों से भी लोगों से राय मांगते हैं, और कम से कम दावा तो यही करते हैं कि लोगों ने जो आपत्ति और सुझाव भेजे थे, उन पर सोच-विचार किया गया था। अब संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी संबंधी संसदीय समिति ने अपनी एक रिपोर्ट लोकसभा अध्यक्ष को दी है जो कि संसद के अगले सत्र में पेश की जाएगी। इस कमेटी ने कहा है कि आज एआई से गढक़र जो फेक न्यूज बनाई और फैलाई जाती है, उसके पीछे के लोगों, और संस्थाओं की शिनाख्त करके उन पर मुकदमा चलाने के लिए ठोस कानूनी प्रावधान किए जाएं। एआई के इस्तेमाल से आज कई तरह की खराब चीजें बनाई जा सकती हैं। हम देश में एआई से गढ़ी हुई तस्वीरों, और वीडियो तो देख ही रहे हैं, अधिक करीब के छत्तीसगढ़ में भी कुछ नए-नए उगे हुए सोशल मीडिया अकाऊंट से कांग्रेस और भाजपा के नेताओं पर ऐसे हमले हो रहे हैं। देश में अभी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, और उनकी गुजर चुकीं मां जैसे कोई किरदार गढक़र कोई एआई वीडियो बनाया गया है, और उसके खिलाफ भी पुलिस में शिकायत की गई है।

यह मामला बड़ा दिलचस्प है। एआई तो अभी कोई सालभर से ही ऐसी चीजों में इस्तेमाल हो रहा है, लेकिन सोशल मीडिया पर लोगों के खिलाफ गंदी और ओछी बातें लिखना तो दशकों से चल रहा है। दो दशक हो गए हैं कि लोग इंटरनेट, और सोशल मीडिया का इस्तेमाल एक-दूसरे पर हमले के लिए कर रहे हैं, और भारत में हर दिन लाखों लोग विरोधियों को साम्प्रदायिक धमकियां देते हैं, सबसे गंदी गालियों के साथ कत्ल और बलात्कार की धमकियां देते हैं, और जिनसे असहमत हैं, उनके पूरे परिवारों को सोशल मीडिया पर प्रताडि़त करते हैं। ऐसे सारे ही हमलावर लोगों के हाथ आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस नाम का एक और हथियार लग गया है। लेकिन इस बात को अच्छी तरह समझने की जरूरत है कि इस साल भर के पहले भी ये हमलावर तो कोई दो दशक से मौजूद ही हैं, और खुलकर साम्प्रदायिक नफरत फैला रहे हैं, किसी महिला जर्नलिस्ट को प्रेस्टीट्यूट लिख रहे हैं, और उसे प्रॉस्टीट्यूट के बराबर रख रहे हैं। तो आज संसदीय समिति ने एआई को लेकर जो फिक्र जाहिर की है, वह दरअसल पिछले दशकों में खड़ी हुई इस हमलावर-‘बलात्कारी-हत्यारी’ फौज को लेकर होनी चाहिए थी। अब तक लोग बिना एआई के जो जुर्म कर रहे थे, उस जुर्म में अब एआई की मदद और जुड़ गई है, तो उसकी वजह से पहली बार उसे जुर्म मानना भोलेपन की नासमझी अधिक दिखती है। अगर इस देश में ऐसे ट्रोल करने वाले ‘बलात्कारी-हत्यारे’  पहले से काबू में किए गए रहते, वे जेल भेजे गए रहते, तो लोग ऐसी सार्वजनिक धमकियां देने को अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मानकर नहीं चलते रहते। अब जब लोग जहरीली-नफरती हिंसा फैलाने के आदी हो चुके हैं, और उस पर आज भी कोई कार्रवाई नहीं हो रही है, तो फिर महज एक तकनीक को कोसना हास्यास्पद लगता है। एआई के आगमन के पहले तक जो लोग जुबानी बलात्कार-कत्ल करने में सार्वजनिक रूप से फख्र हासिल करते थे, उन्हें यह अच्छी तरह मालूम है कि देश और प्रदेशों की सरकारें उनके खिलाफ कुछ नहीं करेंगी। ऐसे में सिर्फ एआई को लेकर, या सिर्फ फेक न्यूज को लेकर फिक्र जाहिर करना पत्तों के इलाज के लिए दवा छिडक़ने जैसा है, क्योंकि उस पेड़ की जड़ों को तो पानी से सींचा ही जा रहा है।

न सिर्फ लोकतंत्र, बल्कि किसी भी तंत्र के तहत चलने वाला देश या समाज इस तरह टुकड़े-टुकड़े में सोचकर कतरे-कतरे में कार्रवाई नहीं कर सकता। लोगों की सोच को अलोकतांत्रिक, अमानवीय, और हिंसक करते चले जाना, और फिर उनसे यह उम्मीद करना कि वे एआई जैसे औजार का इस्तेमाल न करें, यह बचकानी बात है। कातिल की हत्यारी-सोच को रोकने की जरूरत है, उसके विकसित हो जाने के बाद उसे यह सिखाना कि वह लाल हत्थे के चाकू से कत्ल न करे, यह किस काम का रहेगा? लोकतंत्र एक जटिल व्यवस्था है, इसमें लोगों की सोच को कानून का सम्मान करने का बनाया जाना चाहिए, उन्हें यह नहीं सिखाया जा सकता कि कानून के एक से सोलह तक के पेज अनदेखा करके उन्हें तोडऩा जायज है, और सोलह से बत्तीस पेज के कानूनों का सम्मान करना जरूरी है।

सोशल मीडिया हिन्दुस्तान के लोगों में से कई करोड़ लोगों की नफरत और हिंसा की सोच का पुख्ता सुबूत है। इस पर अगर जड़ों से कार्रवाई नहीं होगी, तो जहर का यह पेड़ चारों तरफ फैलते चले जाएगा, फैल चुका है, और फैल रहा है। इसलिए इस मंत्रालय, या किसी और मंत्रालय की संसदीय समिति को यह सोचना चाहिए कि जब नफरती हिंसा की बीमारी लोकसभा के भीतर तक पहुंच चुकी है, और सत्तारूढ़ पार्टी का सांसद, एक विपक्षी, और अल्पसंख्यक सांसद को सदन के भीतर ही गंदी से गंदी गालियां दे सकता है, धमका सकता है, तो फिर एआई जैसी एक तकनीक को तोहमत देने की बात पूरी तरह बोगस है। भारतीय समाज में सोच-समझकर फैलाए गए नफरत के संक्रमण को काबू करना, एआई से गढ़े गए फेक पर रोक लगाने से नहीं हो पाएगा। जब नफरत कोरोना की तरह फैली हुई है, तो कोरोना मरीज को नेल पॉलिश लगाने से भला महामारी पर क्या रोक लग सकेगी? एआई पर चर्चा से अपने आपको फिक्रमंद साबित करने का पाखंड संसदीय समिति को किनारे रखना चाहिए, और लोकसभा के भीतर से लेकर सडक़, और सोशल मीडिया तक नफरत का जो बोलबाला है, हिंसा को जिस तरह मान्यता दे दी गई है, उसके बारे में फिक्र करना चाहिए, वरना एआई के फिक्र के बिना भी सांसदों को तनख्वाह, और सहूलियतें तो उतनी ही मिल ही रही है।

(Daily Chhattisgarh) 

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